पंकज धीर : एक अविस्मरणीय नायक
कल यानी 15 अक्टूबर 2025 को टीवी जगत को एक बहुत बड़ा धक्का लगा, जब प्रसिद्ध अभिनेता पंकज धीर का निधन हो गया। वे 68 वर्ष के थे।
🔸 शुरुआत और जीवन यात्रा
पंकज धीर का जन्म 9 नवंबर 1956 को पंजाब में हुआ था। बचपन से ही अभिनय के प्रति रुचि थी और इस जुनून ने उन्हें धीरे-धीरे उस मुकाम तक पहुंचाया, जहाँ वे हर घर में “कर्ण” के नाम से जाने गए।
उनकी फ़िल्मी पृष्ठभूमि (पारिवारिक संबंध) भी इस राह में सहायक रहा।
🎭 करियर की ऊँचाइयाँ
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पंकज धीर ने 1988 में बी. आर. चोपड़ा की टीवी महाकृति “महाभारत” में कर्ण का अभिनय किया, जो उनका सबसे चर्चित और स्थायी किरदार बन गया।
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इस भूमिका की लोकप्रियता इतनी बढ़ी कि कभी-कभी पाठ्यपुस्तकों में कर्ण का चित्र धीर के अभिनय स्वरूप में छपा।
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इसके अलावा उन्होंने टीवी शो “चंद्रकांता”, “युग”, “बढो बहू” आदि में भी काम किया।
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फिल्मों में भी वे छोटे–बड़े किरदारों में नज़र आए — जैसे Soldier, Baadshah, Tumko Na Bhool Paayenge आदि।
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उन्होंने अभिनय को आगे ले जाने के लिए Abbhinnay Acting Academy की स्थापना की।
उनका अभिनय, अभिनय शैली और स्क्रीन पर उपस्थिति, सब कुछ दर्शकों में गहरा प्रभाव छोड़ गई।
🩺 स्वास्थ्य संघर्ष और आखिरी समय
पंकज धीर लंबे समय से कैंसर से जूझ रहे थे। उन्होंने इस बीमारी से पहले भी संघर्ष किया था।
कुछ समय पहले उन्हें एक बड़ी सर्जरी भी हुई थी, लेकिन बीमारी ने फिर उभर कर उन्हें परेशान किया।
अंततः 15 अक्टूबर 2025 की सुबह उनका जाना निश्चित हो गया।
उनका अंतिम संस्कार पवन हंस क्रेमेटोरियम, विले पार्ले, मुंबई में शाम लगभग 4:30 बजे किया गया।
बॉलिवुड के कई दिग्गज जैसे सलमान खान वहाँ पहुंचे और उन्होंने उनके परिवार के प्रति संवेदना व्यक्त की।
💔 गम और श्रद्धांजलि
उनकी मृत्यु की खबर सुनकर न सिर्फ उनके परिवार बल्कि पूरी फिल्म-टीवी इंडस्ट्री और उनके लाखों प्रशंसक शोक में हैं।
उनके पुत्र नितिन धीर ने एक भावुक पोस्ट साझा किया:
“जो आता है उसे आने दो, जो जाता है उसे जाने दो, जो रहता है उसे रहने दो … बहुत कठिन है आगे बढ़ना।”
उनकी फिल्मों और धारावाहिकों में निभाई गई भूमिकाएँ, उनकी आवाज़, उनकी यादें, सब उनके चाहने वालों के दिलों में ज़िंदा रहेंगी।
✨ विरासत और महत्व
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पंकज धीर ने यह साबित किया कि टीवी कलाकार की भूमिका समाज और संस्कृति पर कितना गहरा असर डाल सकती है।
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“कर्ण” उनके लिए केवल एक किरदार नहीं था, बल्कि एक पहचान थी, जिसे हर नए पीढ़ी तक याद रखा जाएगा।
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उनका अभियनकशाला और प्रेरणा आने वाली पीढ़ियों को सिखाती रहेगी कि संघर्ष और आत्मविश्वास से कैसे राह बनाई जाती है।
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उन्होंने यह दिखाया कि कला जीवन भर साथ रहती है — चाहे कलाकार यहाँ ना रहे, यादें और प्रभाव रहें।

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